Facebook SDK

मटर की खेती कैसे करें



दलहनी फसलों में मटर का प्रमुख स्थान है जिसका उपयोग प्रायः सब्जी के रूप में किया जाता है। यह प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन व खनिज लवणों से भरपूर होती है। इसे देश के विभिन्न भागों में लगभग 583 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में प्रति वर्ष उगाया जाता है। देश के कुल मटर उत्पादन का 133 प्रतिशत हिस्सा (लगभग 41 लाख टन) मध्य प्रदेश से आता है। सब्जी मटर उत्पादन की दृष्टि से मध्य प्रदेश दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। इसकी खेती प्रदेश के जबलपुर, नरसिंहपुर, उज्जैन, इंदौर, हरदा, ग्वालियर, रतलाम आदि जिलों में प्रमुखता से की जाती है। मटर की हरी फलियों के लिए उगाई अगेती फसल कम समय (45 से 65 दिन) में तैयार हो जाने के कारण उसी खेत में गेहूँ, जौ आदि रबी फसलों की बुआई समय से की जा सकती है जो दलहन के रूप में मटर उगाने से संभव नहीं हो पाती। साथ ही हरी फलियों के भाव अच्छे मिलने के कारण प्रति इकाई क्षेत्र अधिक लाभ कमाया जा सकता है।  

मटर के लिए जलवायु कैसी होना चाहिए

ठंडी जलवायु मटर की खेती के लिए उपयुक्त होती है। जिन क्षेत्रों में ठंड की अवधि लम्बी होती है ऐसे क्षेत्र मटर की खेती के लिये अच्छे माने जाते हैं। बीजों के अंकुरण के लिए औसत तापमान 22 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। यदि तापमान 13-18 डिग्री सेल्सियस हो तो बीजों का सर्वोत्तम अंकुरण प्राप्त होता है। अच्छी फसल व अपेक्षित उत्पादन हेतु अधिक 12-20 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त रहता है।


मटर केे लिए भूमि का चुनाव और खेत की तैयारी कैसे करें 


इस फसल को प्रत्येक कृषि योग्य भूमि में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, किन्तु मटियार दोमट और दोमट भूमि सर्वोत्तम पायी गयी है। खेत की तैयारी के पहले पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। इसके बाद दो से तीन जुताईयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से करें और प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाएं।

बुआई का उपयुक्त समय कौन सा है

हरी फलियों के लिए अगेती मटर की बुआई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से 20 अक्टूबर तक की जानी चाहिए। बुआई के समय दिन का अधिकतम तापमान 30 डिग्री सेल्सियस और रात्रि का न्यूनतम तापमान 20 डिग्री सेल्सियस होना जरूरी है। इससे पहले बुआई करने पर अधिक तापमान के कारण फसल में उकठा रोग (बिल्ट) का आक्रमण हा जाता है के अंकुरण के बाद पूरी फसल सूख जाती है।

बीज उपचार कैसे करें

अच्छे अंकुरण और जमाव के लिए बीज बोने से 24 घंटे पहले बीजों को पानी में भिगोयें। इसके बाद छाया में सुखाकर फफूंदनाशक दवाओं यथा कार्बोडाजिम 50 डब्ल्यू पी या कार्बोक्सिन 75 प्रतिशत एवं थायरम से उपचारित करें। इस उपचार के लिए काडाजिम / काबाक्सिन की 1 ग्राम मात्रा एवं 1.5 ग्राम थायरम की मात्रा (कुल 25 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपयोग करें। मिश्रित फफूंदनाशी कार्बोक्सिन + थायरम या काडाजिम + मेनकोजेब उपयोग भी उक्त हेतु किया जा सकता हैमटर की हरी फलियों की अच्छी पैदावार लेने के लिए बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना न भूलें इस उपचार के लिए 50 ग्राम गुड़ आधा लीटर पानी में घोलकर 10 मिनिट उबालें और ठंडा होने पर उसमें राइजोबियम लेग्यूमिनोसोरम कल्चर का एक पैकेट ( 200 ग्राम) मिलाकर लेप बनायें जो 10-15 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त माना गया है। इस लेप को बीज पर समान रूप से बिखेर कर अच्छी तरह मिलायें ताकि प्रत्येक बीज कल्चर के सम्पर्क में आ सकें। तत्पश्चात पी. एस.बी. कल्चर से भी इसी प्रकार बीज उपचार करें इससे फास्फेटिक उर्वरकों की घुलनशीलता बढ़ती है। कल्चर से उपचारित बीजों को एक साफ कपड़े को चादर पर फैलाकर छाया में सुखायें और 2-3 घंटों के अंदर बुवाई कर दें। पहले फफूंदनाशक दवा से बीज उपचार करें और फिर कल्चर से उपचारित करें।

 बुआई कैसे करें

 अनुसंधान परीक्षणा में पाया गया है कि 33 लाख हेक्टेयर की पौध संख्या को 66 लाख / हेक्टेयर तक बढ़ाने में उपज में सार्थक वृद्धि होती है। परन्तु 45 लाख पौध संख्या को प्राप्त करने हेतु प्रति हेक्टेयर 125 से 140 किलोग्राम की बीज दर पर्याप्त होती है। अतः कतारों के बीच 20 से 25 सेमी. का अंतर रखना चाहिए। बीज की बुआई 4 से 5 से.मी. गहराई पर करनी चाहिए। इस बात को सुनिश्चित कर लें कि उचित पौध संख्या के लिए बुआई के समय पर्याप्त नमी होना जरूरी है। उत्तरी मध्य प्रदेश के किसान 100 से 125 किलोग्राम मटर के 75 प्रतिशत अंकुरण क्षमता वाले बीज प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में बोते हैं। (विशेषकर "अर्किल' किस्म के लिए) और उन्हें इसी बीज दर से अधिकाधिक मुनाफा मिलता है।


खाद एवं उर्वरक कौन सा खरीदें

अपेक्षित उत्पादन एवं बेहतर मृदा स्वास्थ्य हेतु 15-20 टन पकी हुई गोबर की खाद या 8–10 टन कचुआ खाद अंतिम जुताई से पूर्व खेत में डालकर अच्छी तरह मिला दना चाहिए। इसके अतिरिक्त एनपीके की अनुशंसित मात्रा 20:50:20 किग्रा/हे. आधार रूप में देना चाहिए जिस हेतु यूरिया 43 किलो सिंगल सुपर फास्फेट 300 किलो तथा 33 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश की मात्रा को बुआई के समय बीज के नीचे 3-4 से.मी. गहरा बोना चाहिए। फलियाँ वाली मटर में आधार खाद के रूप में संतुलित उर्वरक इफको" 1232-16) 125 किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में उपयोग करना बेहतर रहता है। खड़ी फसल में अमोनियम मॉलिब्डेट के 0.1 प्रतिशत घोल के छिड़काव से फलियों में दानों की संख्या बढ़ती है। 



मटर मे खरपतवार प्रबंधन कैसे करें


खरपतवारनाशक बासालिन की 2 लीटर मात्रा को 700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में हाथ/पैर से चलाये जाने वाले स्प्रेयर से खेत की आखिरी तैयारी के समय छिड़कें अथवा बोनी के 48 घंटे के अंदर पेंडीमेथिलीन नामक खरपतवारनाशी की 2-25 लीटर व्यवसायिक मात्रा का 700 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। खेत में खरपतवारनाशक दवा डालने के 30 दिन बाद एक बार ई-गुड़ाई अवश्य करें, इससे फलियों की उपज 20 प्रतिशत बढ़ जाती है। इस बात को किसानों को भलीभांति समझ लेना चाहिए कि मटर की फसल में बाई के 40 दिन बाद तक खरपतवारों पर नियंत्रण रखना आवश्यक है, क्योंकि तब तक मटर के पौधे भूमि को पूर्ण रूप से ढंक नहीं पाते और खरपतवार शीघ्र उग आते हैं। खरपतवार फलियों वाली मटर के पौधों की वृद्धि में रूकावट पैदा करते हैं। अतः हर हालत में मटर के खेत में बुवाई के 30 दिन बाद तक खरपतवार को नहीं पनपने देना चाहिए। सिंचाई हल्की मिट्टियों में 2 और भारी मिट्टियों में 1 सिंचाई, मौसम के अनुसार करें। अगर महावट (जाड़ों की वर्षा) समय से हो जाए तो सिंचाई की संख्या कम हो सकती है। अगर रात का तापमान अधिक कम होने वाला हो तो हल्की सिंचाई क्रमशः फूल आने से पहले और फलियों आते समय अवश्य करें। पहली बार हरी फलियाँ तोड़ने के बाद हल्की सिंचाई करने से दूसरी तुड़ाई में ज्यादा फलियाँ प्राप्त होती हैं।

 प्रमुख रोग कौन-कौन से हैं

मटर की अगेती फसल में रोग कभी नहीं आता, किन्तु पिछती बुआई में अगेती फलियोंवाली मटर में दिसम्बर-जनवरी माह में पाउडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण दिखने लगते हैं। पत्तियों, तन्तुओं तथा फलियों पर चूर्णी कवक का सफेद चूर्ण सा फलता है जो प्रारंभ में बहुत छोटे-छोटे धब्बों के रूप में दिखाई देता है और बाद में पत्तियाँ काली होकर मरने लगती है। इससे प्रकोप की अवस्था में बोज के लिए उगायी गई फसल में 47 प्रतिशत तक उपज में गिरावट जाती है। अतः रोग के लक्षण दिखते ही घुलनशील गंधक (सल्फेक्स 70 प्रतिशत) की 25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। यह छिड़काव 10 दिन के अंतर से कम से कम दो बार करना चाहिए। प्रमुख कीट अगेती फलियों वाली में तना भेदक मक्खी (स्टेम फ्लाई) का प्रकोप अधिक होने की संभावना रहती है। यह काले रंग की मक्खी होती है। पत्तियों, डंठलों और कोमल तनों में गड्डे बनाकर मक्खी उनमें अन्डे देती है। अण्डों में निकले मैगट पत्ती के डंठल या कोमल तनों में सुरंग बरनाकर अंदर से खाते हैं, जिससे पौधे अंत में सूख कर मर जाते हैं। खड़ी फसल में प्रकोप होने पर उसकी रोकथाम के लिए डाइमिथियेट 30 इ.सी. की 1.5 लीटर मात्रा 500 लीटर पानी में घोलकर हाथ से छिड़कने वाले पम्प से छिडकाव एक हेक्टेयर क्षेत्र में करें। दवा का छिड़काव इस प्रकार करे कि पूरा पौध ऊपर से नीचे तक भीग जाये।।

 उपज

अगेती मटर की किस्मों की हरी फलियों की 50 से 80 क्विंटल उपज प्रति हेक्टेयर क्षेत्रमें प्राप्त कर सकते हैं। मध्यम व लम्बी अवधि की हरी फलियों की 80 से 120 क्विंटल उपज प्रति हेक्टेयर क्षेत्रमें प्राप्त कर सकते हैं



Post a Comment

और नया पुराने