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papaya fruit ki kheti पपीता की खेती कैसे करें

carica papaya


 पपीता जल्दी बढ़ने वाला एक फलदार पौधा है। इसके पौधे एक ही वर्ष में फल देने लगते है। यह विटामिन-‘ए’ तथा ‘सी’ का अच्छा स्त्रोत है। इसका फल खाने में स्वादिष्ट होता है।पपीते का पौधा प्रायः सीधा तथा षाखा रहित होता है। फल पेड़ के तने पर पत्तियो के मूल।स्थान पर लगते है। इसका पेड़ लगभग छः वर्ष तक जीवित रहता है जो बाद में काफी ऊंचा हो जाता है किन्तु आर्थिक दृष्टि से दो वर्ष तक ही फल देना लाभदायक होता है। पेड़ की आयु बढने से तने कीऊंचाई बढती जाती है। पोषक तत्वो की दृष्टि से पपीता एक स्वादिष्ट एवं पौष्टिक फल है तथा इस फलके गूदे मे प्रोटीन,वसा, एवं खनिज पदार्थ  पाये जाते है। इसके अतिरिक्त विटामिन ‘ए‘ 2050 आई. यू तथा विटामिन ‘सी‘ 60 मिली ग्राम प्रति 100 ग्राम गुदे में पाये जाते है। स्वास्थ्यवर्धक फल होने के साथ-साथ यह अत्यन्त लोकप्रिय भी है कच्चे फलो से सब्जी तथा अन्य खाद्य पदार्थ जैसे - हलवा, कंडी, पेठा,चटनी व पकोंडे भी बनाये जाते है। इसके फलो में एक प्रकार की एन्जाइम पायी जाती है जिसे ‘पपेन‘ कहते है जों प्रोटीन के पाचन में सहायक होता है। कच्चे फलो के खुरचने से दूध(पपेन) निकलता है जिसे कई प्रकार की औषधियों तथा औद्योगिक कार्यो में इस्तेमाल किया जाता है। पपीते की उन्नत कृषि तकनीक अन्य परम्परागत फसलों की तुलना में पपीते की खेती सें काफी लाभ अर्जित किया जा सकता है,बशर्ते इसकी खेती आधुनिक ढंग से तथा वैज्ञानिको के निर्देशों के अनुसार की जाए। अतः भरपूर उत्पादन लेने के लिए मुख्य रूप से निम्न बातों पर ध्यान देना होगा।

जलवायु एवं भूमि

पपीता एक ऐसा सदाबहार पौधा है जो अधिक सर्दी और पाला न पडने वाले क्षेत्रां में सरलता पूर्वक उगाया जा सकता है। उष्ण कटिबंधीय पेड़ होने के कारण इसके विकास के लिए धूप व सिंचाई का उतम प्रबन्ध अति आवश्यक है यह उष्ण जलवायु का पौधा है जो खुले धूप वाले क्षेत्र में पानी की सुविधा के साथ उगाया जा सकता है। इसके लिये पाला हानिकारक होता है। जल निकास युक्त दोमट मिट्टी पपीते की खेती के लिये उत्तम रहती है। भूमि की गहराई 45 सेमी. होनी आवश्यक है। इसकी बागवानी के लिए अधिकतम तापमान 38 डिग्रीसेन्टीग्रेड से न्यूनतम 10 डिग्री सेन्टीग्रेड होना चाहिए। यह गर्म जलवायु में सफलता पूर्वक उगाया जाता है।अच्छी खेती के लिए अधिक वर्षा, तेज, हवांए, लू व पाला हानिकारक होता है। लगातार वर्षा होने वअधिक समय तक पानी में खडा रहनं पर पपीते के पौधे या तो गलकर गिर जाते है या तेज हवा के कारण उखड जाते है। इन सारी बातो पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।

papaya for weight loss- पपीता स्वाद के साथ-साथ सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है इसका स्वाद बहुत ही मीठा होता है तथा इसको खाने से हमारे पेट में पाचन क्रिया सुधार जाती है और साथ ही साथ यह हमारे वजन को कम करने में भी सहायक होता है क्योंकि इसमें प्रोटीन विटामिंस आदि प्रचुर मात्रा में होते हैं यह  papaya weight loss के लिए भी उपयोग किया जाता है पपीते को खाने से हम अपने वजन को कम करने में मदद मिलती है

papaya for diabetes पपीता विभिन्न रोगों से निजात दिलाने में सहायक है पपीते को डायबिटिक पेशेंट भी खा सकते हैं परंतु ध्यान रहे वैसे सलाद के रूप में लिखा है तो ज्यादा बेहतर है या फिर कम मीठा पपीता खा सकते हैं

उन्नत किस्में

 पपीते की ऐसी अनेक प्रमुख किस्म है जिनका उपयोग हम खाने के अलावा पपेन के उत्पादन हेतु भी करते हैं । अत उपयोग के आधर पर पपीते की विभिन्न प्रजातियों को मुख्यत तीन भागो में बांटा जा सकता है।


दोनों रूपो में फल खाने एवं पेपन उत्पादन का प्रमुख किस्में -

 पेन -1, पी. के-12, कयोम्बटूर-6, पूसा मैजेस्टी, आदि।

  1.  पूसाडेलिसियस-  यह किस्म फलन में सबसे अच्छी है तथा उच्च गुणवत्तायुक्त फल देती है। इसमें नरपौधे नहीं पाये जाते हैं। व्यवसायिक स्तर पर यह एक लोकप्रिय प्रभेद हैं इसमें फल लगभग 3 फीट का ऊंचाई पर लगते है फल का आकार मध्यम , फल का भार 1.5 से 2.5 किलोग्राम गूदा सुवास युक्त गहरे संतरी रंग का होता है। फल देखने में लुभावना एवं खाने में स्वादिष्ट होता है। पूसा नन्हा- यह एक छोटे कद वाली प्रजाती है। इसमें नर पौधे नहीं होते है। इसकें फलो का स्वाद अच्छा तथा फल आकार में बड़ा होता है। इसमें 500से 700 ग्राम तक के फल आते है। इसको बक्सों एवं ड्रमों में भी उगाया जा सकता है। प्रतिवर्ष इसमें 15 से 20 तक फल आते है। 
  2. पूसा डवार्फ - इसमें रोपण के सांतवे माह से फल आने लगते है और फल मध्यम आकार के अंडाकार होते है तथा फलों का वजन 1.2 से 1.5 किलोग्राम तक होता है। इसकें फलो का स्वाद अच्छा होता है। एवं प्रति पेड़ 35 से 40 किलोग्राम तक फलों की पैदावार मिलती है।
  3.  कुर्ग हनी ड्यू:- पौधे कम ऊंचाई के होते है जिन पर बहुत कम ऊंचाई पर फल लगने शुरू हो जाते है। पौधों में नर और मादा दोनों फूल आते है। फल बड़े आकार के गूदा मोटा व मीठा होता है।
  4.  रेड लेडी (ताइवान):- लोकप्रिय उभयलिंगी किस्म है। फल मध्यम आकार के 1.5 से 2 किग्रा. भार युक्त जिनका गुद्दा मोटा व आर्कषक लाल रंग लिए होता है। यह किस्म जल्दी पकने वाली अधिक उत्पादक (70 से 80 किग्रा. फल प्रति पौधा) के साथ रिंग स्पाट वायरस के प्रति सहनशील है।
  5. पूसा जायंट- पूसा का विभिन्न प्रजातियों में सें यह अधिक फल देने वाली काफी मजबूत प्रजाति है।इसके पेड़ काफी ऊंचाई तक जाता है। इसमें 3 फीट की ऊंचाई सें फल लगने लगते है।
  6. पूसा मैजेस्टी:- पपेन उत्पादन के लिए यह प्रजाति अच्छी मानी जाती है। इसमे नर पौधे नही पाये जाते है। इसमे फल 2 फीट की उचाई से लगने लगते है। फल मध्यम आकार के गोल होते है तथा प्रति पेड़ 45 से 50 किलोग्राम तक फल लगते है।
  7. कयोम्बटूर -1-: यह प्रजाति दक्षिणी भारत में काफी लोकप्रिय है। यह स्थानीय रांची किस्म के चुनाव विधि से निकाला गया है। इसमे लगने वाला फल मध्यम आकार का गोल होता है। फलो का वजन 1 kg- 2 kg किलोग्राम होता है और औसतन प्रति पेड़ 40 से 50 किलोग्राम फल आते है। इस प्रजाति में male एव्ं female मादा दोनो प्रकार के पौधे पाये जाते है।
  8. कयोम्बटूर -2 :-पपीते की यह प्रजाति दक्षिणी भारत में पपेन उत्पादन के लिए प्रमुखता से उगाई जाती है। इसमें नर एव्ं  मादा मे 50ः50 मे होते है तथा इसमे 15 से 25 किलोग्राम ते फल आते है। तथा एक पेड़ से औसतन 200 ग्राम पपेन का उत्पादन होता है। इसमे प्रति पेड़ औसतन 50 किलोग्राम फल लगते है।
  9. कयोम्बटूर -3:- सनराइज सोलो एवं कयोम्बटूर -2 के संकरण से विकसित हुई इस प्रजाति मे नर पौधे नही पाये जाते है। व्यवसायिक स्तर पर यह प्रभेद दक्षिणी भारत में काफी लोकप्रिय है। इसमे लगने वाले फल मध्यम आकार के व मीठे होते है। इसमे औसतन 35 से 40 किलोग्राम फल प्राप्त होते है।
  10. कयोम्बटूर -4 :- यह भी कयोम्बटूर -1 एवं वाशिंगटन के संकरण द्वारा विकसित प्रभेद है। इसके पौधे बैंगनी रंग लिये हुए होते है। 1 से 15 किलोग्राम तक फल आते है। तथा इसमे औसतन 35 से 40 किलोग्राम फल प्राप्त होते है।
  11. कयोम्बटूर -5:- यह प्रभेद वाशिंगटन प्रभेद के चुनाव द्वारा विकसित होता है। इसमे प्रति पौधे पपेन उत्पादन की क्षमता बहुत अधिक है़। इसमे पपेन उत्पादन प्रति पौधा 14 -15 ग्राम तक होता है। इसमे 70-80 फल दो वर्षो के अंदर प्राप्त होते है तथा प्रति हैक्टयर 150 -160 किलोग्राम तक पपेन उत्पादन होता है।
  12. कयोम्बटूर -6 :- यह प्रभेद कयोम्बटूर -2 से हर मामले मे उन्नत है और इसमे प्रति पौधा 7 से 8 ग्राम तक पपेन का उत्पादन होता है।
  13. फार्म सलेक् न- 1 :- फलो के रूप में यह भी एक अच्छी प्रजाति है।
  14. हनीडयू :- यह प्रजाति छोटे पैमाने पर उगायी जाने वाली अच्छी प्रजातियो मे से एक है।।
  15. पेन-1 :- यह तंजानिया प्रभेद है तथा इसने समस्त भारत (खासकर मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र) में पिछले चार - पांच साल से पपीते की खेती में एक नयी क्रांति ला दी है। किसानो द्वारा इसकी खेती काफी सफलतापूर्वक की गई है।एवं इस प्रभेद ने अनेक किसानों को काफी लाभ पहुंचाया है। आज यह उन प्रभेदों में प्रथम स्थान पर है।जिसे किसानों द्वारा व्यवसायिक रूप में उगाया जा रहा है। इस प्रभेद में  फल जमीन से मात्रा 1 से 1ण्5 फीट की ऊंचाई से ही लगने लगते है तथा रोपण के आंठवे माह से ही फल आने लगते है। यह काफी मजबूत प्रभेद है और इसका पौधा स्वस्थ एवं सुडौल होता हे तथा फल का आकार बड़ा होता है तथा फलों का वनज 2 से 3ण्5 किलोग्राम तक होता है।फल काफी मीठा होता है और इसमें 70 से 75 फल आते है। इसमें फलों का उत्पादन 600-700 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो सकता है तथा इस प्रभेद के प्रति पौधा 30ण्0-40ण्0 ग्राम तक पपेन उतपादित किया जा सकता है।
  16. पी.के.- 10 :- इस प्रभेद में नर पौधें नही पाये जाते तथा समस्त पौधे फल देने वाले होते है। उभयलिंगी होने के कारण कुछ फल लंबे होते है। इस प्रभेद के फल 1ण्5 से 2ण्5 किलोग्राम तक होता है।
  17. पी.के.-11: -यह प्रभेद मुख्यत उन किसानो के लिए काफी लाभदायक है जो बहुत बड़ी खेती करने के बजाय छोटे स्तर पर पपीते की खेती करना चाहते है। इसमें प्रति पेड़ 50 से 60 तक फल लगतें हेै तथा कुछ पेड़ो में जमीन से ही फल लगने लगते है
  18. पी.के.-12:-इस प्रभेद में अच्छे फलन होते है तथा मध्य भारत के किसानां े में यह काफी लोकप्रिय है । एक पेड़ में औसतन 60 से 70 फल आते है। फल काफी मीठा होता है। इस प्रभेद का प्रयोग खाने एवं पपेन उत्पादन दोंनों के लिए बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।
  19. पंत -1:- यह पंत नगर कृषि विश्व विद्यालय द्वारा विकसित प्रभेद है। इसके फल मध्यम आकार वाले होते है तथा यह उतरांचल के तराई क्षेत्रो के लिए अनुशांसित है।

 papaya nursery

पपीते का प्रवर्धन बीज द्वारा है। पौधे तैयार करने के लिये पौधशाला की अच्छी तरह खुदाई करके, खाद मिला कर उठी हुई क्यारियां तैयार कर लेनी चाहिये। बीजों को 2 सेमी की दूरी पर 10 सेमी की कतारों में लगभग 1 से 1.5 सेमी की गहराई पर बोना चाहिये। जब पौधे 5 से 7 सेमी बड़े हो जायें तो उन्हें पोलीथीन की थैलियों में बदल देना चाहिये। जब पौधे 15-20 सेमी के हो जाये तो खेत में निश्चित स्थान पर लगा देना चाहिये। एक हैक्टेयर क्षेत्र की पौध तैयार करने के लिये लगभग 100 ग्राम बीज पर्याप्त होते है।

पौधे लगाने की विधि

खेत में 2-2 मीटर की दूरी पर 45-45-45 सेंटीमीटर आकार के गड्डे़ खोदें। प्रत्येक गड्डे में 200 ग्राम सुपर फाॅस्फेट, 10 किग्रा. गोबर की सड़ी खाद व 50 ग्राम मिथाइल पैराथियान चूर्ण मिलाकर भर देना चाहिये। पपीते के पौधे जुलाई से सितम्बर व फरवरी-मार्च में रोपण कर सकते हैं।

खाद एवं उर्वरक

पपीते के पौधों में 10 से 15 किलो गोबर की खाद, 100 ग्राम यूरिया, 400 ग्राम सुपर फाॅस्फेट व 150 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति पौधे के हिसाब से देना चाहिये। यूरिया की 25 ग्राम मात्रा पौध लगाने के दो माह बाद, 25 ग्राम पौध लगाने के चार माह बाद तथा 50 ग्राम फूल आने से पूर्व देवें। सुपर फाॅस्फेट की 200 ग्राम मात्रा गड्ड़ा भरते समय तथा 200 ग्राम मात्रा पौध रोपण के 5 से 6 माह बाद देवें। पोटाश को गड्ड़ा भरते समय देवें। देशी खाद की मात्रा जून-जुलाई/फरवरी-माच में देनी चाहिये। अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए खाद एवं उर्वरको का समुचित मात्रा में प्रयोग करना जरूरीहै।  इन उर्वरको का आधा भाग बरसात शुरू होने के तुरन्त बाद तथा आधा भाग बरसात मे समाप्त होने के समय सितम्बर माह में देना चाहिए।

सिंचाई एवं देखभाल

पपीते की जड़े भूमि में गहरी नहीं जाती है अतः थोड़े-थोड़े समय के अन्तर से सिंचाई करनी चाहिये लेकिन इस बात का विशेष ध्यान देते रहे कि पेड़ के तने के पास पानी भरा नहीं रहे वरना जड़ और तने के सड़ने की सम्भावना रहती है। गर्मियों में लगभग एक सप्ताह के अन्तर से तथा जाड़े में 10 से 15 दिन के अन्तर से सिंचाई करनी चाहिये। खेत में जल निकास की समुचित व्यवस्था रखनी चाहिये तथा तने के चारों तरफ थोड़ी मिट्टी चढ़ा देनी चाहिये ताकि पानी तने के सीधे सम्पर्क में नहीं आये। बूॅंद- बूॅंद सिंचाई पद्धति अपनाने से फल उपज व गुण (quality)में सुधार होता है।

पौध संरक्षण कीट प्रबंध

हरा तेला एवं सफेद मक्खी:- पपीते के पौधे पर मुख्यतः हरा तेला व सफेद मक्खी का आक्रमण होता है। यह कीट पत्तियों से रस चूस कर नुकसान पहुंचाता है। नियंत्रण हेतु मिथाईल डेमेटोन 25 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर या डाइमिथोएट 30 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

लाल मकड़ी: यह फलों एवं पत्तियों पर आक्रमण करती है। नई पत्तियां पीली पड़ जाती है

रोकथाम: ओमाइट या इथियोन 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

मूल ग्रन्थि (सूत्रकृमि):- इसके आक्रमण से जड़ों पर गांठे पड़ जाती है तथा पौधा कमजोर और पीला पड़ जाता है और फल भी छोटे व कम लगते है। नियंत्रण हेतु पौध तैयार करते समय कार्बोफ्यूरान 3 जी 8 से 10 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से नर्सरी में देवें तथा पौध लगाते समय 3 ग्राम कार्बोफ्यूरान 3 जी प्रति पौधे के हिसाब से प्रयोग करें।

तना या पद विगलन रोग (स्टेम या फुट राॅट):- इस रोग के प्रभाव से भूमि की सतह से तनों में सड़न आरम्भ होती है जो धीरे धीरे बढ़कर पूरे तने को घेर लेती है रोग ग्रस्तभाग गहरा भूरा व काला हो जाता है। रोगी पेड़ों के पत्ते व फल पीले पड़कर गिरने लगते है। रोग के प्रभाव से पेड़ों की छाल फट जाती है व शहद के छत्तेनुमा दिखाई देते है। ऐसे पेड़ गिर जाते है। तना सड़न उत्पन्न करने वाले कवक से ही नर्सरी में पपीते की पौध में आर्द्र गलन रोग होता है। नियंत्रण हेतु:

  •  बाग में पानी का निकास अच्छा होना चाहिये। पेड़ लगाते समय व उसके बाद में भी तने पर किसी प्रकार की चोट नहीं लगनी चािहये। 
  • रोग दिखाई देते ही रोगग्रस्त भाग को पूरी तरह हटाकर काॅपरआक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत का लेप या छिड़काव कर देवें। बोर्डो मिश्रण (5ः5ः50) तने के आधार के चारों ओर भूमि में डालने व तने पर छिड़काव करने से रोग का प्रसार घट जाता है। वर्षा ऋतु में इन क्रियाओं को कम से कम तीन बार प्रयोग में लाया जाना चाहिए।
  • पौधों पर रोग का प्रभाव अधिक होे जाने की अवस्था में पेड़ को जड़ सहित निकाल कर नष्ट कर देना आवश्यक है। उसी गड्डे में फिर से दूसरा पेड़ कुछ समय तक नहीं लगाना चाहिये।
  • नर्सरी में पौध को रोग से बचाने के लिये मिट्टी को 3 ग्राम ताम्रयुक्त कवकनाशी प्रति लीटर पानी की दर के घोल से तर कर देवें और बीजों को थाइरम 3 ग्राम प्रति किलों बीज की दर से उपचारित कर बोयें।

पर्णकुंचन व मोजेक (लीफ कर्ल व मोजेक):-  यह विषाणु जनित रोग है। पर्णकुंचन रोग से पत्तियां आकार में छोटी, कुंचित, विकृत व सिकुड़न लिये मोटी शिराओं वाली हो जाती है। वे स्पष्ट रूप से उल्टे प्याले के रूप में नीचे की तरफ एवं भीतर की ओर मुड जाती है। पर्णवृन्त टेढे मेढ़े हो जाते है। इन पौधों पर फल और फूल नहीं लगते है। पौधे की वृद्धि रूक जाती है और पत्तियां गिर जाती है।

मोजेक -रोग से नई पत्तियों पर चितकबरापन व सिकुड़न सबसे पहले दिखाई पड़ता है। ऐसी पत्तियां आकार में छोटी, विकृत और लता तन्तु जैसी हो जाती है। डंठल छोटे रह जाते है और पौधे की वृद्धि रूक जाती है। पौधें के सिरे पर नई पत्तियों के मुट्ठीनुमा गुच्छे के अतिरिक्त पुरानी पत्तियां गिर जाती है। फल छोटे विकृत व मोजेक जैसे धब्बे वाले होते है।

नियंत्रण- पर्णकुचन रोगग्रस्त पेड़ कभी भी स्वस्थ नहीं हो सकते है और मोजेक संक्रमित पौधे़ भी आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं होते है। तथा साथ ही उनमें रोग प्रति वर्ष बढ़ता जाता है। अतः रोगी पेड़ों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिये जिससे रोग का फैलाव रूक सके।

पपीते की कोई भी किस्म रोगरोधी नहीं होती है। रोग का फैलाव कीटों से होता है अतः कीटनाशी डाइमिथोएट 30 ई सी या मिथाइल डिमेटोन 25 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर या इमिडाक्लोरोपिड 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी के हिसाब से घोलकर 15 दिन के अन्तर पर छिड़काव करें। इन दवाओं का प्रयोग फल लगने से पहले ही करना चाहिये। फल लगने के बाद मैलाथियाॅन 50 ई सी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़कना चाहिये। पपीते के बाग के आसपास कद्दू, लोकी, ककड़ी, बैंगन, मिर्च, टमाटर व आलू नहीं उगायें।

पाला-आंधी एवं तूफान से बचाव

सिंचाई एवं घास-फूस से ढक कर पाले से पौधो का बचाव किया जा सकता है। बगीचे के चारो तरफ हवा अवरोधक पौधे लगाने से ठंडी अथवा तेज हवाओ सें पौधो की रक्षा की जा सकती है।

तुड़ाई एवं उपज

जब फल हल्का या पीलापन लेने लगे और उसमें सफेद दूध आना बन्द हो जाये तो समझना चाहिये कि फल पक गया है अतः इनकी तुड़ाई कर लेनी चाहिये। फलों को पक्षियों से बचाने के लिये इनके चारों ओर पुराना टाट बांधा जा सकता है। पपीते से प्रति पौधा 40 से 50 किलोग्राम उपज प्राप्त होती है। प्रति पौधा औसतन 200 ग्राम पपेन प्राप्त किया जा सकता है।

papaya price पपीते की बाजार कीमत

बाजार में पपीते की कीमत 20 से ₹30 प्रति किलो होती है और अच्छी किस्म का फल ₹40 तक बिक जाता है पपीते को बेचने में कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि आप भारत में सभी लोगों द्वारा उपयोग किया जाता है चाहे कच्चे रूप में या फिर पके रूप मे  पपीते का उपयोग जूस आदि बनाने में भी उपयोग किया जाता है और लोग इसे कच्चे रूप में भी papaya salad के रूप में भी खाते हैं।

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