Facebook SDK

Ganne ki kheti गन्ने की खेती से कमाए लाखों रुपए



भूमि, मौसम व खेत की तैयारी:-

 भूमि-गन्ने की खेती मध्यम से भारी काली मिट्टी में की जा सकती है। दोमट भूमि जिसमें सिंचाई की उचित व्यवस्था व जल का निकास अच्छा हो, तथा पी‐एच‐ मान 6‐5 से 7‐5 के बीच हो, गन्ने के लिए सर्वोत्तम होती है।

 मौसम- गन्ने की बुआई वर्ष में दो बार किया जा सकता है।

1‐षरदकालीन बुवाई - इसमें अक्टूबर -नवम्बर में फसल की बुवाई करते हैं और फसल 10-14 माह में तैयार होता है।

2‐बसंत कालीन बुवाई - इसमें फरवरी से मार्च तक फसल की बुवाई करते है। इसमें फसल 10 से 12 माह में तैयार होता है।

3 शरदका लीन गन्ने- बसंत में बोये गये गन्ने से 25-30 प्रतिषत व ग्रीष्मकालीन गन्ने से 30-40 प्रतिषत अधिक पैदावार देता है

खेत की तैयारी

खेत की ग्रीष्मकाल में अपे्रल से 15 मई के पूर्व एक गहरी जुताई करें। इसके पश्चात 2 से 3 बार देषी हल या कल्टीवेटर, से जुताई कर तथा रोटावेटर व पाटा चलाकर खेत को भुरभुरा, समतल एवं खरपतवार रहित कर लें एवं रिजर की सहायता से 3 से 4‐5 फुट की दूरी में 20-25 से‐मी‐ गहरी कूड़े बनाये।

उपयुक्त किस्म, बीज का चयन, व तैयारी - गन्ने के सारे रोगों की जड़ अस्वस्थ बीज का उपयोग ही है। गन्ने की फसल उगाने के लिए पूरा तना न बोकर इसके दो या तीन आंख के टुकड़े काटकर उपयोग में लायें। गन्ने ऊपरी भाग की अंकुरण 100 प्रतिषत, बीच में 40 प्रतिषत और निचले भाग में केवल 19 प्रतिषत ही होता है। दो आंख वाला टुकड़ा सर्वोत्तम रहता है।

गन्ना बीज का चुनाव करते समय सावधानियां:-

  •  उन्नत जाति के स्वस्थ निरोग शुद्ध बीज का ही चयन करें।
  •  गन्ना बीज की उम्र लगभग 8 माह या कम हो तो अंकुरण अच्छा होता है। बीज ऐसे खेत से लेवें जिसमें रोग व कीट का प्रकोप न हो एवं जिसमें खाद पानी समुचित मात्रा में दिया जाता रहा हो।
  • जहां तक हो नर्म गर्म हवा उपचारित (54 से‐ग्रे‐ एवं 85: आद्र्वता पर 4 घंटे) या टिश्यूकल्चर से उत्पादित बीज   का ही चयन करें।
  • हर 4-5 साल बाद बीज बदल दें क्योंकि समय के साथ रोग व कीट ग्रस्तता में वृद्वि होती जाती है।
  • बीज काटने के बाद कम से कम समय में बोनी कर दें।

गन्ने की उन्नत जातियांः-

गन्ने की फसल से भरपूर उत्पादन लेने के लिए उन्नत किस्म के बीज का प्रयोग करना आवष्यक है। उन्नत किस्मों से 15-20: अधिक उत्पादन प्राप्त होता है मध्यप्रदेष के लिये गन्ने की उपयुक्त किस्मों का विवरण-

शीघ्र पकने वाली जातियां

  • को.सी.-671 =उपज (टन/हे.) 90-120 शक्कर के लिए उपयुक्त, जड़ी के लिए उपयुक्त, पपड़ी कीटरोधी।
  • को.जे.एन. 86-141उपज (टन/हे.) 90-110 जड़ी अच्छी, उत्तम गुड़, शक्कर अधिक, उक्ठा, कंडवा, लाल सड़न अवरोधी।
  • को.86-572उपज (टन/हे.) 90-112 अधिक शक्कर, अधिक कल्ले, पाईरिल्ला व अग्रतना छेदक का कम प्रकोप, उक्ठा,

कंडवा, लाल सड़न अवरोधी।

  • को. 94008 उपज (टन/हे.) 100-110 अधिक उत्पादन, अधिक शक्कर, उक्ठा, कंडवा, लाल सड़न अवरोधी।
  • को.जे.एन.9823 उपज (टन/हे.) 100-110 अधिक उत्पादन, अधिक शक्कर, उक्ठा, कंडवा, लाल सड़न अवरोधी।

मध्यम व देर से पकने वाली जातियां

  • को. 86032 उपज (टन/हे.) 110-120 उत्तम गुड़, अधिक शक्कर, कम गिरना, जडी गन्ने के लिए उपयुक्त, पाईरिल्ला वअग्रतना छेदक का कम प्रकोप, लाल सड़न कंडवा उक्ठा प्रतिरोधी।
  • को. 7318 उपज (टन/हे.) 120-130 अधिक शक्कर, रोगों का प्रकोप कम, पपड़ी कीटरोधी।
  • के. 99004 उपज (टन/हे.)120-140 लाल सड़न कंडवा उक्ठा प्रतिरोधी।
  • को.जे.एन.86-600उपज (टन/हे.) 110-130 उत्तम गुड़, अधिक शक्कर, पाईरिल्ला व अग्रतना छेदक का कम प्रकोप, लाल सड़न

कंडवा उक्ठा प्रतिरोधी।

  • को.जे.एन.9505 उपज (टन/हे.) 100-110 अधिक उत्पादन, अधिक शक्कर, उक्ठा, कंडवा, लाल सड़न अवरोधी।

गन्ना बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर-नवम्बर ही क्यों चुनें:-

  1. फसल में अग्रवेधक कीट का प्रकोप नहीं होता।
  2.  फसल वृद्धि के लिए अधिक समय मिलने के साथ ही अंतरवर्तीय फसलों की भरपूर संभावना।
  3. अंकुरण अच्छा होने से बीज कम लगता है एवं कल्ले अधिक फूटते हैं।
  4.  अच्छी बढ़वार के कारण खरपतवार कम होते है।
  5.  सिंचाई जल की कमी की दषा में, देर से बोयी गई फसल की तुलना में नुकसान कम होता है।
  6.  फसल के जल्दी पकाव पर आने से कारखाने जल्दी पिराई शुरू कर सकते हैं।
  7. जड़ फसल भी काफी अच्छी होती है।

बीज की मात्रा एवं बुआई पद्वतियां-

गन्ना बीज की मात्रा बुवाई पद्धति, कतार से कतार की दूरी एवं गन्ने की मोटाई पर के आधार पर निर्भर करता है जिसका विवरण निम्नानुसार है।

  •  सामान्यतः मेड़नाली पद्वति से बनी 20-25 से‐मी‐ बनी गहरी कूड़ों में सिरा से सिरा या आंख से आंख मिलाकर सिंगल या डबल गन्ना टुकड़े की बुवाई की जातीहै। बिछे हुए गन्ने के टुकड़ों के ऊपर 2 से 2‐5 से‐मी‐ से अधिक मिट्टी की परत न हो अन्यथा अंकुरण प्रभावित होता है।

बीजोपचारः-

 बीज जनित रोग व कीट नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 2 ग्रा/ लीटर पानी व क्लोरोपायरीफास 5 मि‐ली‐/ली हे‐ की दर से घोल बनाकर आवष्यक बीज का 15 से 20 मिनिट तक उपचार करें।

मृदा उपचारः- 

ट्राईकोडर्मा विरडी / 5 कि‐ग्रा‐/हे‐ 150 कि‐ग्रा‐ वर्मी कम्पोस्ट के साथ मिश्रित कर एक या दो दिन नम रखकर बुवाई पूर्व कूड़ों में या प्रथम गुड़ाई के समय भुरकाव करने से कवकजनित रोगों से राहत मिलती है।

टमाटर की खेती कैसे करें पढ़ने के लिए क्लिक करें

एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन

खाद एवं उर्वरक:-

फसल के पकने की अवधि लम्बी होने कारण खाद एवं उर्वरक की आवष्यकता भी अधिक होती है अतः खेत की अंतिम जुताई से पूर्व 20 टन सड़ी गोबर/कम्पोस्ट खाद खेत में समान रूप से मिलाना चाहिए इसके अतिरिक्त 300 किलो नत्रजन (650 कि‐ग्रा‐ यूरिया ), 85 कि‐ग्रा‐ स्फुर,(500 कि‐ग्रा‐ सिंगल सुपर फास्फेट) एवं 60 कि‐ पोटाष (100कि‐ग्रा‐ म्यूरेटआपपोटाष) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। स्फुर एवं पोटाष की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करें एवं नत्रजन की मात्रा को निम्नानुसार प्रयोग करें।

  1. शरदकालीन गन्नाः-षरदकालीन गन्ने में ऩत्रजन की कुल मात्रा को चार समान भागों में विभक्त कर बोनी के क्रमषः 30, 90, 120 एवं 150 दिन में प्रयोग करें।
  2.  बसन्तकालीन गन्नाः-बसन्तकालीन गन्ने में नत्रजन की कुल मात्रा को तीन समान भागों में विभक्त कर बोनी क्रमषः 30, 90 एवं 120 दिन में प्रयोग करें।
  3. नत्रजन उर्वरक के साथ नीमखली के चूर्ण में मिलाकर प्रयोग करने में नत्रजन उर्वरक की उपयोगिता बढ़ती है साथ ही दीमक से भी सुरक्षा मिलती है। 
  4. 25 कि‐ग्रा‐ जिंकसल्फेट व 50 कि‐ग्रा‐ फेरस सल्फेट 3 वर्ष के अंतराल में जिंक व आयरन सूक्ष्म तत्व की पूर्ति के लिए आधार खाद के रूप में बुवाई के समय उपयोग करें।

विषेष सुझाव-

  • मृदा परीक्षण के आधार पर ही आवष्यक तत्वों की अपूर्ति करें।
  •  स्फुर तत्व की पूर्ति सिंगल सु‐फा‐फे‐ उर्वरक के द्वारा करने पर 12 प्रतिषत गंधक तत्व (60 कि‐ग्रा‐/हे‐) अपने आप उपलब्ध हो जाता है।
  •  जैव उर्वरकों की अनुषंसित मात्रा को 150 कि‐ग्रा‐ वर्मी कम्पोस्ट या गोबर खाद के साथ मिश्रित कर 1-2 दिन नम कर बुवाई पूर्व कुड़ों में या प्रथम मिट्टी चढ़ाने के पूर्व उपयोग करें। जैव उर्वरकों के उपयोग से 20 प्रतिषत नत्रजन व 25 प्रतिषत स्फुर तत्व की आपूर्ति होने के कारण रसायनिक उर्वरकों के उपयोग में तद्नुसार कटौती करें।
  •  जैविक खादों की अनुषंसित मात्रा उपयोग करने पर नत्रजन की 100 कि‐ग्रा‐/ हे‐ रसायनिक तत्व के रूप में कटौती करें।

जल प्रबंधन -सिंचाई व जल निकास:

गर्मी के दिनों में भारी मिट्टी वाले खेतों में 8-10 दिन के अंतर पर एवं ठंड के दिनों में 15 दिनों के अंतर से सिंचाई करें। हल्की मिट्टी वाले खेतों में 5-7 दिनों के अंतर से गर्मी के दिनों में व 10 दिन के अंतर से ठंड के दिनों में सिंचाई करना चाहिये। सिंचाई की मात्रा कम करने के लिये गरेड़ों में गन्ने की सूखी पत्तियों की पलवार की 10-15 से‐मी‐ तह बिछायें। गर्मी में पानी की मात्रा कम होने पर एक गरेड़ छोड़कर सिंचाई देकर फसल बचावें। कम पानी उपलब्ध होने पर ड्रिप (टपक विधि) से सिंचाई करने से भी 60 प्रतिशत पानी की बचत होती है। गर्मी के मौसम तक जब फसल 5-6 महीने तक की होती है स्प्रींकलर (फव्वारा) विधि से सिंचाई करके 40 प्रतिषत पानी की बचत की जा सकती है। वर्षा के मौसम में खेत में उचित जल निकास का प्रबंध रखें। खेत में पानी के जमाव होने से गन्ने की बढ़वार एवं रस की गुणवत्ता प्रभावित होती है। खाली स्थानों की पूर्ति-कभी-कभी पंक्तियां  में कई जगहों पर बीज अंकुरित नहीं हो पाता है इस बात में ध्यान में रखते हुए खेत में गन्ने की बुआई के साथ-साथ अलग से सिंचाई स्त्रोत के नजदीक एक नर्सरी तैयार कर लें। इसमें बहुत ही कम अंतराल पर एक आंख के टुकड़ों व बुवाई करें। खेत में बुवाई के एक माहवाद खाली स्थानों पर नर्सरी में तैयार पौधों को सावधानीपूर्वक निकाल कर रोपाई कर दें।

भारत में शिमला मिर्च की खेती कैसे की जा सकती है पढ़ने के लिए क्लिक करें

खरपतवार प्रबंधन-

  1.  अंधी गुड़ाईः गन्ने का अंकुरण देर से होने के कारण कभी-कभी खरपतवारों का अंकुरण गन्ने से पहले हो जाता है। जिसके नियंत्रण हेतु एक गुड़ाई करना आवष्यक होता है जिसे अंधी गुड़ाई कहते है।
  2. निराई-गुड़ाई: आमतौर पर प्रत्येक सिंचाई के बाद एक गुड़ाई आवष्यक होगी इस बात का विषेष ध्यान रखें कि व्यांत अवस्था (90-100 दिन) तक निराई-गुड़ाई का कार्य
  3.  मिट्टी चढ़ाना: वर्षा प्रारम्भ होने तक फसल पर मिट्टी चढ़ाने का कार्य पूरा कर लें (120 व 150 दिन) ।

 रासायनिक नियंत्रणः

  1.  बुवाई पष्चात अंकुरण पूर्व खरपतवारों के नियंत्रण हेतु एट्राजीन 2‐0कि‐ग्रा‐ प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के एक सप्ताह के अन्दर खेत में समान रूप से छिड़काव करें।
  2.  खडी फसल में चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए 2-4-डी सोडियम साल्ट 2‐8 कि‐ग्रा‐ /हे‐ हिसाब से 600 लीटर पानी का घोल बनाकर बुवाई के 45 दिन बाद छिड़काव करें।
  3. खडी फसल में चैड़ी -सकरी मिश्रित खरपतवार के लिए 2-4-डी सोडियम साल्ट 2‐8 कि‐ग्रा  मेटीब्यूजन 1 कि‐ग्रा‐ /हे‐ हिसाब से 600 लीटर पानी का घोल बनाकर बुवाई के 45 दिन बाद छिड़कावकरें। 

अन्तरवर्ती खेती-

 गन्ने की फसल की बढ़वार शुरू के 2-3 माह तक धीमी गति से होता है गन्ने के दो कतारों के बीच का स्थान काफी समय तक खाली रह जाता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए यदि कम अवधि के फसलों को अन्तरवर्ती खेती के रूप में उगाया जाये तो निष्चित रूप से गन्ने के फसल के साथ-साथ प्रति इकाई अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो सकता है। इसके लिये निम्न फसलें अन्तरवर्ती खेती के रूप में ऊगाई जा सकती है।

शरदकालीन खेतीः-गन्ना आलू (1ः2), गन्ना  प्याज (1ः2), गन्ना  मटर(1ः1), गन्ना  धनिया (1ः2) गन्ना  चना (1ः2), गन्ना  गेंहू (1ः2)

बसंतकालीन खेतीः-गन्ना  मूंग(1ः1), गन्ना उड़द (1ः1), गन्ना  धनिया (1ः3), गन्ना  मेथी (1ः3),

गन्ने को गिरने से बचाने के उपायः-

  1. गन्ना के कतारों की दिषा पूर्व-पष्चिम रखें। गन्ना की उथली बोनी न करें।
  2. गन्ना के कतार के दोनों तरफ 15 से 30 से‐मी‐ मिट्टी दो बार (जब पौधा 1‐5 से 2 मीटर का (120 दिन बाद) हो तथा इससे अधिक बढ़वार होने पर चढ़ायें(150दिन बाद)।
  3. गन्ना की बंधाई करें इसमें तनों को एक साथ मिलाकर पत्तियों के सहारे बांध दें। यह कार्य दो बार तक करें। पहली बंधाई अगस्त में तथा दूसरी इसके एक माह बाद जब पौधा 2 से 2‐5 मीटर का हो जाये। 
  4. बंधाई का कार्य इस प्रकार करें कि हरी पत्तियों का समूह एक जगह एकत्र न हो अन्यथा प्रकाष सष्ंलेषण क्रिया प्रभावित होगी।

कीट नियंत्रण-

  • पाईरिल्ला - निम्फ व प्रौढ़ पत्ती रस चूसकर शहद जैसा चिपचिपा पदार्थ स्त्राव करते है। जिसमें काले रंग की परत विकसित हो जाती है।पत्ती पीली व बढ़वार रूकती है। उपज में 28 प्रतिषत व शक्कर में 2‐5 प्रतिषत गिरावट एपीरीकीनिया जैविक कीट के कोकून / 5000/हे‐ उपयोग करें। कीटनाषकां  का उपयोग व पत्ती जलाने से जहा  तक हो सके बचे। आवष्यकता पड़ने पर क्विनालफास 25 ई‐सी‐ 1‐5 ली‐/हे‐ घोल का छिड़काव, मैलाथियान 50 ई‐सी‐2‐0 ली‐/हे‐ की दर से 1000 ली/हे‐े पानी के साथ छिड़काव
  • अग्रतना छेदक - 15 से 100 दिनों तक क्षति संभव 1लार्वी कई तनों को भूमिगत होकर क्षति पहंचु ाती है। डेडहार्ट बनता एवं प्रकोपित पौधा नहीं बचाया जा सकता। बगल से कई कल्ले निकलते है शीतकालीन बुवाई- अक्टूबर-नवम्बर गन्ना बीज को बुवाई के पूर्व 0‐1 प्रतिषत क्लोरोपाइरीफास 25 ई‐सी‐ घोल में 20 मिनिट तक उपचारित करे। प्रकोप बढ़ने पर फोरेट 10 जी 15-20 कि‐ग्रा हे‐ या कार्बाफ्यूरान 3 जी 33 कि‐ग्रा/हे‐ का उपयोग करें
  • सफेद मक्खी- निम्फ व प्रौढ़ पत्ती की निचली सतह से रस चूसते है। पत्ती पीली पड़कर सूखती है और पत्तियां  पर काल मटमैल  रंग की पर विकसित होती है। उपज में 15 से 85 प्रतिषत तक नुकसान शीतकालीन बुवाई अक्टूबर-नवम्बर में करें  संतुलित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग उचित जल निकास बनाये। एसिडामेप्रिड या एमिडाक्लोप्रिड 17‐8 एस‐ए‐एल‐ 350 मि‐ली‐, 600 ली‐/हे‐ पानी के साथ उपयोग करें।
  • उकठा रोग-  प्रभावित पौधे की बढ़वार कम। उकठा अवरोधी जातियों-सी‐ओ‐जे‐एन‐86141, सी‐ओ‐जे‐एन‐ 86600।

भारत में शिमला मिर्च की खेती कैसे की जा सकती है पढ़ने के लिए क्लिक करें

गन्ने की कटाई-

फसल की कटाई उस समय करें जब गन्ने में सुक्रोज की मात्रा सबसे अधिक हो क्यांेि क यह अवस्था थोड़े समय के लिये होती है और जैसे ही तापमान बढ़ता है सुक्रोज का
ग्लूकोज में परिवर्तन प्रारम्भ हो जाता है और ऐस े गन्ने से शक्कर एवं गुड़ की मात्रा कम मिलता है। कटाई पूर्व पकाव सर्वेक्षण करें इस हेतु रिफलेक्टो मीटर का उपयोग करं े
यदि माप 18 या इसके उपर है तो गन्ना परिपक्व होने का संकेत है। गन्ने की कटाई गन्ने की सतह से करें।

उपज- गन्ने उत्पादन में उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग कर लगभग 1000 से 1500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गन्ना प्राप्त किया जा सकता है।

अधिक उपज प्राप्त करने हेतु प्रमुख बिन्दु:-

  •  अनुषंसित प्रजातियां (षीघ्र पकने वाली) को‐जे‐एन‐ 86-141, को‐सी‐ 671 एवं को‐ 94008, (मध्यम अवधि) को‐जे‐एन‐ 86-600, को‐ 86032 को ‐99004 का उपयोग करें।
  •  गन्ना फसल हेतु 8 माह की आयु का ही गन्ना बीज उपयोग करे।
  •  शरदकालीन गन्ना (अक्टूर-नवम्बर) की ही बुवाई करें। गन्ना की बुवाई कतार से कतार 120-150 से‐मी‐ दूरी पर गीली कंूड पद्धति से करें।
  • बीजोपचार (फंफूदनाषक-कार्बेन्डाजेम 2 ग्रा‐ प्रति ली‐ एवं कीटनाषक -क्लोरोपायरीफास 5मि‐ली‐/ली‐15-20 मि‐ तक डुबाकर ) ही बुवाई करें।
  • जड़ी प्रबंधन के तहत-ठूंट जमीन की सतह से काटना, गरेड़ तोड़ना, फफूदनाशक व कीटनाषक से ठूट का उपचार, गेप फिलिंग, संतुलित उर्वरक (एन‐पी‐के‐-300ः85ः60) का उपयोग करें।
  •  गन्ने की फसल के कतारों के मध्य कम समय में तैयार होने वाली फसलों चना, मटर, धनिया, आलू, प्याज आदि फसलें लें।
  •  खरपतवार नियंत्रण हेतु ऐट्राजिन 1‐0 कि‐ग्रा‐/हे‐ सक्रिय तत्व की दर से बुवाई के 3 से 5 दिन के अंदर एवं 2-4-डी 750 ग्रा‐/हे‐ सक्रिय तत्व 35 दिन के अंदर छिडकाव करे।।


तो दोस्तों आज की टॉपिक में बस इतना ही और इसमें कोई और जानकारी यदि आप देना चाहें तो कमेंट बॉक्स में इसकी जानकारी दे सकते हैं और यह भी बता सकते हैं कि यह blog आपको कितना पसंद आया कृपया कमेंट जरुर करें जिससे हमें आप आपकी पसंद या नापसंद के बारे में जानकारी मिल सके। और यदि कोई त्रुटि हो तो बताएं। plese share
धन्यवाद


Post a Comment

और नया पुराने