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चने की खेती कैसे करें और चने में होने वाले रोगों से फसल का कैसे बचाव करें




चने की खेती कैसे करें और चने में होने वाले रोगों से फसल का कैसे बचाव करें

 भारत में चने की खेती मुख्य रूप से सभी प्रदेशों में की जाती है जैसे कर्नाटक मध्य प्रदेश महाराष्ट्र राजस्थान उत्तर प्रदेश देश में चने का उत्पादन बहुत ही अधिक है सभी देश में चने का उत्पादन होता हैचना एक्सेस किलोमीटर की जलवायु की फसल है  

चने की खेती करने के लिए सबसे पहले तो हमें यह पता करना होगा कि हमें कौन सी किस्म का चुनाव करना  है और हमारे प्रदेश या हमारे क्षेत्र में कौन सी वेराइटी है जो चने जो हमें अच्छा उत्पादन देगी और अच्छा उत्पादन देने के साथ-साथ रोगों से प्रतिरोधक क्षमता भी होगी

इसके बाद हमें अपने खेत का चुनाव करना होगा हमें खेत के चुनाव करते समय ऐसी मिट्टी वाला खेत देखना होगा जो चने की खेती के लिए बहुत ही अनुकूल हो और अच्छा उत्पादन दे सके काली मिट्टी चने के उत्पादन के लिए बहुत ही अच्छी मानी जाती है

इसके बाद हमें अपने खेत में पानी देने के लिए समुचित व्यवस्था का प्रबंध कर लेना चाहिए क्योंकि समझाने की फसल में पानी देना बहुत ही जरूरी होता है जहां पानी की व्यवस्था कम है या सिंचाई नहीं की जा सकती ऐसे खेत में चने को बोने में हमें परेशानी हो सकती है और उत्पादन भी कम होगा और फसल मर भी सकती है

भूमि की तैयारी कैसे करें

वैसे तो चना सभी प्रकार की मिट्टी में हो जाता है और अच्छा उत्पादन न देता है अभी हम अपने खेत की तैयारी से उसे और उत्पादन ले सकते हैं इसके लिए हमें सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर लेना चाहिए और अच्छे से खेत को साफ कर लेना चाहिए कोई भी कचरा नहीं रहना चाहिए हम हल के द्वारा भी खेत की जुताई अच्छी तरह से कर सकते हैं

बीज की मात्रा और बुवाई का समय क्या है

 सितंबर के आखिरी सप्ताह एवं अक्टूबर के तीसरे सप्ताह में चने की बोनी कर देनी चाहिए और जिस क्षेत्र में जिस समय पर बोनी की जाती है उसके हिसाब से ही बोनी करनी चाहिए ना ज्यादा लेट ना ज्यादा जल्दी इससे चना सही समय पर आ जाता है और अगली फसल हम ले सकते हैं

बीज दर -75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर काबुली चना 100 से 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर देसी चना 80 से 10pकिलोग्राम प्रति हेक्टेयर

अब हम चने की नई किस्मों के बारे में जानेंगे

इंदिरा चना ,ग्वालियर, उज्जैन 4 ,Jg315 , विजय के डब्लू आर 108

जेजे 16 ,पूसा 1003

बीज उपचार कैसे करें

बीज उपचार करने के लिए हमें भाई थाईरम 2 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से और राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए इसके लिए हम थोड़ा सा पानी सींच कर ज्यादा नहीं बिल्कुल थोड़ा सा जिससे से यह कल्चर अच्छी तरह पूरे चने को ढक ले और चने का रंग काला हो जाना चाहिए या जिस प्रकार का कल्चर यथा है हमें उस तरह का हो जाना चाहिए

खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग

चने की खेती के लिए हमें वैसे तुम नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाश सल्फर आदि  रासायनिक उर्वरकों का उपयोग तो होता ही है हमें तो गोबर की खाद का इस्तेमाल अधिक से अधिक करना चाहिए इससे फसल अच्छी होती है और उत्पादन भी अच्छा होता है और यह पर्यावरण के लिए नुकसानदायक भी नहीं होती है

चने की खेती में सिंचाई की समुचित व्यवस्था होना चाहिए होने के जब भी आवश्यकता हो हमें चने के खेत को पानी देना चाहिए सूखा नहीं छोड़ देना चाहिए सिंचाई के लिए हम स्प्रिंकलर या ड्रिप सिंचाई के माध्यम से सिंचाई कर सकते हैं 

निराई-गुड़ाई 
प्रथम निराई-गुड़ाई के 25-35 दिन पर तथा आवश्यकता पड़ने पर दूसरी निराई-गुड़ाई करना मुश्किल हो वहां पर सिंचित फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए पलेवा के बाद आधा किलो फ्लूक्लोरीलीन प्रति हेक्टेयर की दर से 750 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव कर भूमि में मिलाये, इसके बा चने की बुवाई करें।

चने की खेती में होने वाले रोगों और उनसे बचाव का तरीका

दीमक दीमक के प्रकोप से बचाव के लिए हमें मेलाथियान 4% क्यूंनालफास प्रयोग करना चाहिए

फली छेदक इस के प्रकोप से फली में दाना बनते समय अधिक होता है यह नियंत्रित नहीं किया तो उपज का 75% से भी अधिक की कमी आ सकती है इसकी रोकथाम के लिए हमें मोनोक्रोटोफॉस  1 लीटर की दर से 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर फली आते समय फसल पर छिड़काव करना चाहिए

चने में इल्ली के लिए हमें कोराजन और इसके अलावा भी बाजार में अन्य तरह की दवाइयां आती हैं उनका प्रयोग करना चाहिए और अधिक जानकारी के लिए आप अपने क्षेत्र की कृषि विशेषज्ञों की भी मदद ले सकते हैं कि इस रूप के लिए कौन सी दवाई बेहतर है

उकठा यह चना का प्रमुख रोग है। उकठा रोग का प्रमुख कारक फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम प्रजाति साइसेरी नामक फफूँद है। यह समान्यतः मृदा एवं बीज जनित बीमारी है, जिसकी वजह से 10-12 प्रतिशत तक पैदावार में कमी आती है।


चने के उकठा नियंत्रण के लिए हमें उत्तर ओक निरोधक किस्मों का उपयोग तो करना चाहिए साथ ही प्रभावित क्षेत्र में फसल चक्र को अपनाकर लाभ लेना चाहिए साथ ही साथ कार्बेंडाजिम 2.5 ग्राम या ट्राइकोडरमा से बीज उपचार करना चाहिए

झुलसा रोग (एस्कोकाइटा): यह रोग बीज व मिट्टी जनित रोग की श्रेणी में आता है. यह रोग फरवरी मार्च में अधिक दिखाई देता है. इस रोग के कारण पौधे में छोटे और अनियमित आकार के भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। इसके कारण अक्सर पौधे के आधार पर बैंगनी/नीला-काला घाव हो जाता है। इसके गंभीर संक्रमण के कारण फलों पर सिकुड़न हो जाती है और फल सूखने लगते हैं जिससे बीज की सिकुड़न और गहरे भूरे रंग के विघटन के कारण बीज की गुणवत्ता में कमी हो सकती है। इस रोग का मुख्य कारक मिट्टी में अत्यधिक नमी का होना होता है। इससे ग्रसित पौधे के तने एवं टहनियाँ सक्रमण के कारण गीली दिखाई देती हैं।

नियंत्रण उपाय:

पौधों की बुवाई उचित दूरी पर करनी चाहिए तथा अत्यधिक वनस्पतिक बढ़वार से बचना चाहिए।इन रोगों के निवारण के लिए क्लोरोथालोनिल 70% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP@ 500ग्राम/एकड़ या मेटिराम 55% + पायरोक्लोरेस्ट्रोबिन 5% WG @600 ग्राम/एकड़ या टेबूकोनाज़ोल 50% + ट्रायफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% WG@ 100ग्राम/एकड़ या ऐजोस्ट्रोबिन 11% + टेबूकोनाज़ोल 18.3% SC@ 250 मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

चने की बिक्री और उसका भंडार

चने को साफ साफ करके अच्छी तरह बोरे में बंद करके हमें सुरक्षित कर लेना चाहिए या फिर उसे बाजार में अच्छा भाव देखकर तुरंत ही भेज देना चाहिए यदि हम जनरल ज्यादा समय तक रखना चाहते हैं तो हमें दवाइयों के द्वारा उसे पैक कर देना चाहिए जिससे उसमें कीट या किसी प्रकार का घुन आदि ना लग पाए


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