सोयाबीन की खेती कैसे करें
सोयाबीन उत्पादन की उन्नत तकनीक
भारत में सोयाबीन की खेती कई वर्षों से की जा रही है सोयाबीन बरसात के मौसम के एक प्रमुख फसल है यानी ऐसी खरीफ मौसम की एक प्रमुख फसल के रूप में देखा जाता है यह एक दलहन और तिलहन फसल है इसका उपयोग बाजार में कई तरह से किया जाता है इससे सोयाबीन का तेल सोयाबीन की बढ़िया और सोया चाप और सोया सॉस जो आजकल चाइनीस फूड में डाला जाता है यह सभी चीजें बनती है यह बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है क्योंकि इसका व्यापारिक उद्देश्य बहुत अच्छा है और बरसात में जब कोई और फसल नहीं होती तब हम सोयाबीन की फसल लगा सकते हैं क्योंकि यह दूसरी फसलों की तुलना में बरसात को आसानी से सकती है भारत में मध्य प्रदेश को सोया प्रदेश नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहां पर बहुत अधिक मात्रा में सोयाबीन की खेती की जाती थी और यहां पर सोयाबीन से निकलने वाले तेल की कई मिले थीं परंतु अब सोयाबीन की खेती धीरे धीरे कम की जा रही है क्योंकि इसमें विभिन्न वर्षो में कई रोग देखे गए हैं जैसे पीला मोजेक आदि इससे फसल को बहुत ही ज्यादा नुकसान होता है
सोयाबीन विश्व की सबसे महत्वपूर्ण तिलहनी एवं पंधित फसल है। इसने देश की खाद्य तेल आवश्यकता की पूर्ति करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए सोपा-खली के विदेशों में निर्यात से प्रतिवर्ष लगभग 8000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त कर देश की अर्थव्यवस्था को सुद्धता प्रदान करती है। इस फसत की व्यावसायिक खेती वर्तमान में मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र राजस्थान, कर्नाटक एवं आंध्रप्रदेश में की जाती है। इसका पीत क्रांति में भी विशेष योगदान रहा है। सोयाबीन कम अंतरात (85-100 दिन) की होने के कारण फसल प्रणाली में की तरह समाहित हो जाती है। संचिकूत की फसत होने के कारण 50-100 कि.ग्रा. / है. की दर से वातावरण की नत्रजन को मृदा में स्थिर करती हैं। सोयाबीन फसल के निरंतर एवं अधिक उत्पादन प्राप्त करने हेतु फसल प्रबंधन की निम्नलिखित अनुशंसाओं को अपनाने की सलाह इस प्रकाशन के माध्यम से दी जाती है।
सोयाबीन की किस्मों का चयन कैसे करें
मृदा का चयन कैसे करें
सोयाबीन की खेती सभी प्रकार की मुदाओं में (अति अम्लीय, क्षारीय रेतीती मृदाओं को छोड़कर) की जा सकती है। मुदा में अच्छा जल निकास होना चाहिए तथा जैविक कार्बन की मात्रा भी अच्छी होनी चाहिए। यदि हम रासायनिक खादों के साथ गोबर की खाद का उपयोग करते हैं तो यह और भी अधिक लाभदायक होगा हमारी सोयाबीन की खेती के लिए
सोयाबीन के खेत की तैयारी कैसे करें
फसल प्रबंधन के लिये 2 या 3 वर्ष में एक बार खेत की गहरी जुताई करना लाभकारी है। अतः गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई (30 से 45 सें. मी.) के पश्चात विपरीत दिशा में बखवर चलाएं एवं पाटा लगाकर खेत को समतल करें।
बोवनी का समय की तैयारी
बीज अंकुरण परीक्षण
पौध संख्या एवं दूरी
बीज दर
बोवनी का तरीका एवं गहराई
सोयाबीन की बोवनी कतारों में करना अधिक लाभप्रद है। अतः दूफन / तिफन / ट्रेक्टर चलित सीड ड्रील का उपयोग करते हुए बीज को 3 से. मी. तक की गहराई पर बोवनी करें। मानसून की देरी या बोवनी में विलम्ब होने की स्थिति में जल्दी पकने वाली किस्मों का उपयोग कर कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. तक घटाकर तथा बीज दर 25 प्रतिशत बढ़ाकर बोवनी करने की सलाह दी जाती है। बीज और खाद मिलाकर कभी भी बोवनी नहीं करें। तत्पश्चात् जल निकास हेतु खेत में उचित अंतराल पर नालिया बनाएं।
संतुलित पोषण प्रबंधन कैसे करें
बीजोपचार कैसे करें
बोनी से पहले सोपान के बीज को पाम एवं कालिम (21) ग्राम प्रति कि. ग्रा. बीज की दर से अथवा मिश्रित उत्पाद कार्बोक्सिन 37.5% थाइरम 37.5% (विटावेक्स पावर) 2-3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। इनके स्थान पर बीज उपचार हेतु ट्राइकोडर्मा विरिडी (8-10 ग्राम प्रति कि.ग्रा बीज) का भी उपयोग किया जा सकता है। तत्पश्चात् जैविक खाद (ब्रेडीराइजोबियम एवं पीएसबी कल्चर 5 ग्राम प्रति कि. ग्रा. बीज की दर से) से उपचारित करें एवं छाया में सुखाकर तुरन्त बोवनी हेतु उपयोग करना चाहिए।
अर्न्तवर्ती फसल
रोग एवं कीट नियंत्रण कैसे करें
जल प्रबंधन कैसे करें
कटाई एवं गहाई कैसे करें
सोयाबीन की उपज कितनी
भण्डारण कैसे करें
सोयाबीन से बनने वाली चीजें कौन कौन सी है
सोयाबीन का मानव उपयोग बहुत अधिक होता है क्योंकि इस से बनने वाली चीजें बाजार में बहुत मात्रा में बिकती हैं जैसे सोयाबीन से निकलने वाला मिल्क जिसे हम soyamilk नाम से जानते हैं यह बीमार लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है इसके साथ साथ सोया से बनने वाली बड़ी और सोया पापड़ और सोयाबीन से निकलने वाला तेल और उसके बाद सोयाबीन की खली आदि का उपयोग जानवरों के भोजन के लिए किया जाता है सोयाबीन में बहुत ही अधिक मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है उसमें उसमें दालो और अंडे से भी अधिक मात्रा में प्रोटीन होता है स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है यदि सरकार द्वारा किसान भाइयों को ट्रेनिंग दी जाए तो वे लोग भी ऐसे उत्पाद बनाकर बाजार में अपनी अतिरिक्त आए बढ़ा सकते हैं।
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